सीवान निवासी प्रोफेसर रामचंद्र सिंह ने आठ सौ पन्नों का हिंदी महाकाव्य “श्री रामचंद्रायन” की रचना की है. स्वत्व प्रकाशन के द्वारा प्रकाशित इस महाकाव्य का जल्द ही भव्य लोकार्पण होगा.
बिहार में सरयूजी की पुण्यधारा से पोषित सिवान जिले के सरसर गांव निवासी प्रो. रामचन्द्र सिंह जी पर प्रभु श्रीराम की विशेष अनुकम्पा है जिसके कारण उनका मन हमेशा राम कथा चिंतन व श्रवण में लगा रहा। उनका गांव रामभक्ति के लिए प्रसिद्ध है। उनके गांव में हमेशा रामकथा व रामलीला होती रहती है। बाल्यकाल से लेकर युवावस्था तक करीब बीस वर्षों तक उन्होंने अपने गांव की रामलीला में श्रीराम का अभिनय किया। आप कुशाग्र बुद्धि के विद्यार्थी थे। आपका जन्म भारद्वाज गोत्रीय भूमिहार ब्राह्मण कुल में हुआ।
इस प्रकार ये स्वयं को वाल्मीकि की संतती मानते हैं। रसायनशास्त्र से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद आप सिवान के प्रतिष्ठित डीएवी कालेज में प्राध्यापक हुए। विज्ञान के विद्यार्थी होने के बावजूद आपका मन साहित्य रचना में लगा रहा। आप ने कई काव्यग्रंथों की रचना की लेकिन आपका मन श्रीराम कथा में ही रमता था।
करीब 10 वर्ष पूर्व आपके हृदय में भाव आया कि आदि कवि वाल्मीकिजी की रामकथा का अवगाहन कर हिंदी में रामकथा का वर्णन करूं। करीब दस वर्षों की अनवरत साधना, संतों व रामकथा मर्मज्ञों के साथ सत्संग के बाद आपने करीब साम सौ पृष्ठों वाली रामचन्द्रायण नामक महाकाव्य की रचना की। सात कांडों वाले इस महाकाव्य के प्रत्यक कांड सर्गों में विभक्त है। हिंदी में रचित इस ग्रंथ में कई स्थानों पर लोकगीतों की समृद्ध परंपरा के दर्शन होते हैं। श्रीरामचन्द्र सिंहजी चित्रकूट तुलसी पीठ के भक्त है।