पूरी रात चलता रहेगा तंत्र का खेल
कालरात्रि की पूजा के बाद जागरण के बाद दुर्गा मंदिरों का पट खुलते ही लोगों की भीड़ उमड़ पड़ी है। सोमवार को महाअष्टमी व्रत के दौरान बड़ी संख्या में लोगों की भीड़ तमाम दुर्गा मंदिरों में जुट रही है। भगवती का खोईंछा भरने के लिए बड़ी संख्या में महिलाएं विभिन्न मंदिरों में आ रही है। भीड़ सबसे अधिक जिला मुख्यालय के मंदिरों में देखी जा रही है, लेकिन जिले के शक्तिपीठों में मां भगवती साक्षात उतर आई हैं। बखरी पुरानी दुर्गा स्थान, लखनपुर दुर्गा स्थान, भवानंदपुर दुर्गा स्थान, जयमंगलागढ़, जिला मुख्यालय के पुरानी दुर्गा स्थान, बहदरपुर दुर्गा स्थान में साधकों की सबसे अधिक भीड़ उमड़ रही है।
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प्रख्यात साबर मंत्र साधिका बहुरा मामा की धरती और तंत्र साधकों के बीच बिहार के कामाख्या नाम से प्रसिद्ध बखरी में नवरात्रा के जागरण की रात से तंत्र साधकों की भारी भीड़ जुट गई है। जहां पुरानी दुर्गा स्थान में विभिन्न राज्यों से आए दर्जनों सिद्धिकामी माता की पूजा अर्चना के बाद साधना को सिद्धि में बदलने के लिए लीन दिखे। एक बार फिर तंत्र साधना को लेकर लोग दूर दराज से यहां पुरानी दुर्गा स्थान में जमा हुए। इनमें महिलाएं और जवान के अलावे बुजुर्ग लोग भी शामिल हैं।
तंत्र साधना को सिद्ध करने का खेल
जो वर्षों की तंत्र साधना को यहां सिद्धी में बदलने के लिए जमा हुए और अष्टमी की पूरी रात अपने तंत्र साधना की सिद्धी करते रहे।
माना जाता है कि अगर चाकरी चल गई तो वो सिद्ध हो गया और ऐसा नहीं हुआ तो वो अधुरा रह गया।
मान्यता है कि मुगल काल में परमार वंश के राजाओं ने आकर इस मंदिर की स्थापना की थी और आज यहां योग पिशाचनी और कर्णमयी जैसी दुर्लभ तंत्र शक्तियों की साधना और सिद्धि होती है। बखरी के सबंध में ऐसी मान्यता है की यहां कि बकरी और लकड़ी भी डायन हुआ करती थी। आधुनिक युग में भी तंत्र-मंत्र का आलम यह है कि लोग इसमें गहरा विश्वास व्यक्त करते हैं। सिद्वि के लिए चाकरी चलाने आते हैं।
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मंदिर में बहुरा मामा नामक उस डायन की चर्चा
इस मंदिर के अलावा भी बखरी की चर्चा बहुरा मामा नामक उस डायन को लेकर होती है,
जो कभी तंत्र साधना की बदौलत पेड़ के सहारे हवा में उड़ा करती थी।
उनका प्रमुख कार्यक्षेत्र बखरी और बंगाल था।
अपने तंत्र साधना के सहारे देश भर के तांत्रिकों को परास्त करने वाली बहुरा मामा का वो चौबटिया इनार आज भी मौजूद है। जिससे होकर कभी चारों दिशा में जाने का रास्ते था।
इसके सहारे बहुरा मामा सोने की नाव पर सवार होकर कुंआ से कमला के रास्ते अन्य जगहों पर जाया करती थी।
डायन के रूप में चर्चित बहुरा मामा के संबध में कहा जाता है..
की सामंतियों को खत्म करने के लिए उन्होंने तंत्र साधना की थी।
जो बाद में इलाके की पहचान बन गई। बताया जाता है की उस जमाने में
बहुरा मामा गुरुकुल चलाया करती थी जो देश भर में तंत्र साधकों का एक प्रमुख केन्द्र था,
ऐसी ही कई मान्यताओं के बीच बखरी प्रसिद्व है।
नाम नहीं छापने की शर्त पर मधुबनी से आए दो भक्तों ने कहा कि अपने
पूरे साल की साधना के बाद सिद्धी के लिए लोगों को इस दिन यहां आने का खास इंतजार होता हैं।
बखरी पुरानी दुर्गा स्थान में काशी की तर्ज पर आयोजित आरती में गजब का सैलाब उमड़ रहा है।
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