सभ्यता एवं संस्कृति का मूल है गाय और गंगा
गोपाष्टमी के अवसर पर मंगलवार को गौ प्रेमियों ने श्रद्धापूर्वक गाय की पूजा-अर्चना किया।
इस अवसर पर बेगूसराय में स्थित सभी गौशालाओं में गौ पूजन का विशेष कार्यक्रम आयोजित किया गया।
जिला मुख्यालय के श्री गौशाला में आयोजित 136 वें गोपाष्टमी उत्सव में गंगा समग्र के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमरेन्द्र प्रसाद सिंह लल्लूबाबू, विधान पार्षद सर्वेश कुमार एवं विधायक कुंदन कुमार भी शामिल हुए तथा पारंपरिक रीति रिवाज के अनुसार गाय की पूजा कर भोजन कराया।
इस अवसर पर अतिथियों ने कहा कि भगवान श्रीकृष्ण आज ही के दिन पहली बार गौ माता को लेकर जंगल में चराने निकले थे और उसी के प्रतीक ने हम सब गोपाष्टमी मनाते हैं।
गाय और गंगा, संस्कृति और सभ्यता का मूल है, यहीं से भारत की सभ्यता और संस्कृति का उद्भव हुआ।
गौमाता के संरक्षण एवं संवर्धन के लिए हर किसी को तत्पर होना चाहिए।
विश्व में उपलब्ध सभी प्रजातियों में भारतीय गाय की प्रमुखता अतुलनीय है।
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गाय का दूध एक संजीवनी है
गाय वह भावभरी मां है, जो कि जन्म से मृत्यु तक अपने अमृत समान दूध से सबको तृप्त करती रहती है।
यह एक संजीवनी है, जिससे मनुष्य जीवन को दूध, दही, छाछ, मक्खन, घृत जैसी वस्तुएं प्रदान कर उन्हें जीने का सहारा दिया।
गौ मुत्र एवं गोबर द्वारा कृषि को सम्बल दिया, ताकि मनुष्य और प्रकृति चलती रहे।
गौमाता पूरे मानव शरीर और प्रकृति को जीवन प्रदान करती है।
गाय एक चलता-फिरता मंदिर है जो अपने शरीर में 33 कोटि देवताओं को निवास देती है।
अहिंसा, दया और करूणा का संदेश
मनुष्य की अज्ञानता के कारण यह अमूल्य निधि आज विनाश की कगार पर खड़ी है। अहिंसा, दया और करूणा का संदेश देने वाले अपने ही देश में भगवान रामकृष्ण, महावीर, गौतम, नानक, गांधी की धरा पर प्रतिदिन 50 हजार गौवंश की नृशंसतापूर्वक हत्या की जा रही है। गौमाता को बचाने के लिए पूज्य शंकराचार्य, रामानुजाचार्य, रामानन्दाचार्ज, बल्लभाचार्य सहित श्रेष्ठ संत-महात्मा, विद्वान, समाज सेवी गांव-गांव में अलख जगा रहे हैं।
समाज, राष्ट्र एवं विश्व का सर्वांगीण उत्कर्ष का आधार
गौपालन शुद्ध भाव के साथ किया जाए तो यह व्यक्ति ही नहीं समाज, राष्ट्र एवं विश्व का सर्वांगीण उत्कर्ष का आधार हो सकता है।
ग्रामीण जीवन का तो यह आधार स्तंभ ही है।
शारीरिक स्वास्थ्य एवं निरोगिता में गोदुग्ध का महत्व सर्वविदित है।
गाय के गोबर में परमाणु विकिरणों तक को निरस्त करने की क्षमता का वैज्ञानिक आधार पर प्रमाणित किया जा चुका है।
ऐसे ही गौ का संग-सान्निध्य एवं उत्पादों का सेवन मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से व्यक्ति का कायाकल्प करने वाला पाया गया है।
सन 1886 इस गौशाला की स्थापना की गई
गौशाला के सचिव विनोद हिसारिया ने कहा कि सन 1886 इस गौशाला की स्थापना की गई और तब से आज तक बेहतर प्रबंधन, समर्पण, त्याग एवं निस्वार्थ सेवा भाव की वजह से निरंतर प्रगति के पथ पर अग्रसर है।
प्रत्येक दिन 250 से 300 लीटर तक दूध लोगों को उपलब्ध कराया जा रहा है।
प्रयास है कि प्रत्येक दिन पांच सौ लीटर दूध प्राप्त करें।
2021 से भर्रा में नए गौशाला परिसर का निर्माण किया जा रहा है।
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गोपाष्टमी सभ्यता एवं संस्कृति का मूल है गाय और गंगा
इसके लिए राज्यसभा सदस्य सुशील मोदी द्वारा 50 लाख की अनुशंसा की गई है।
नस्ल सुधार की दिशा में भी हम अग्रसर हैं, साहिवाल एवं गिर नस्ल का नंदी चित्रकूट से मंगाया गया है।
गौशाला समाज की संस्कृति है,गोपाष्टमी सभ्यता एवं संस्कृति का मूल है गाय और गंगा
जिसे संभाल कर रखना सबों की जिम्मेवारी है, गौ रक्षा के इस यज्ञ में सभी लोगों को सहभागी बनना चाहिए, ताकि गायों की सेवा का काम निरंतर चलता रहे।
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