दक्षिण भारत में बनने वाली फिल्में भारतीय समाज में सदियों से व्याप्त उत्पीड़न और उससे उपजे प्रतिरोध के स्वर को नई आवाज दे रही है, यह हिन्दी फिल्मों को भी नया रास्ता दिखा रही है। यह बातें साउथ की फिल्मों से कलात्मक जिंदगी की शुरुआत कर 11 भाषाओं में दो सौ से अधिक फिल्मों में अभिनय कर चुके अभिनेता आशीष विद्यार्थी ने कही है। द्रोहकाल, नाजायज, जिद्दी, वास्तव आदि दर्जनों फिल्मों में अपने अभिनय का लोहा मनवा चुके आशीष विद्यार्थी ने कहा है कि रंगमंच और कला के क्षेत्र में बड़े बदलाव हो रहे हैं। बड़े स्तर पर नाटक खेले जा रहे हैं, सोचे जा रहे हैं, दिमाग की बत्ती जल रही जली है, तमाम चीजें इंप्रूव हो रही है।
बेगूसराय में चल रहे द्वितीय राष्ट्रीय नाट्य महोत्सव रंग उत्सव में आए आशीष विद्यार्थी ने हिन्दुस्थान समाचार के साथ विशेष बातचीत में कहा कि तमाम चीजें बदल रही है, बदलते दौर के साथ कला में भी बदलाव आ रहा है, कला लगातार सवाल पूछती है। लेकिन सवाल सिर्फ राजनीति और सरकार से नहीं होती है, बल्कि सवाल होते हैं सोच को लेकर। हम जिंदगी के संबंध में क्या सोचते हैं, कला यही माहौल तैयार करता है, जहां हम बताते हैं कि वह जो तुम चाहते हो वह सच्चा बन सकता है। कोई भी चीज किसी को पसंद नहीं आ रही है, लगता है और करें तो कला से शुरू करें, क्योंकि कला बदलाव सीड क्रियेविटी से शुरू होती है। कलाकार कहते और जताते हैं कि वह जो कहते हैं यह अंत नहीं है, जिंदगी अभी बाकी है और भी बहुत कुछ हो सकता है। इसलिए कहा जाता है कि आर्ट एक जीवंत फॉर्म है।
साउथ और हिंदी फिल्मों में अंतर के मुद्दे पर उन्होंने कहा कि अलग-अलग समय में, अलग-अलग जगहों पर, अलग-अलग तरह की फिल्में बनती है, इसलिए जगह के विवाद में नहीं फंसना चाहिए। आशीष विद्यार्थी ने कहा कि अब ओटीटी का समय चल रहा है, ओटीटी के इस दौर में अलग-अलग विचार के फिल्मों की जरूरत है। यह बेहतरीन मौका है जब विचारों के आधार पर अलग-अलग फिल्में बन सकती है। अगर आपको लगता है कि आपके विचार पर फिल्में बन सकती है तो आगे आकर लिख सकते हैं, फिल्म और थिएटर करके लोगों तक अपनी बात पहुंचा सकते हैं। साउथ में जिस तरह की फिल्में बन रही है, वह अन्य राज्यों से अलग है। आर्ट, सोच, फिल्म और थिएटर उनसब चीजों को प्रज्वलित करेगा, जो समय की मांग है जैसा लोग चाहते हैं।
उन्होंने कहा कि इस समय साउथ में अच्छी फिल्में बन रही है, मानवता के ऊपर बदलाव का यह बेहतर तरीका है। आप जिस कॉज में यकीन रखते हैं, उसी के आधार पर सिर्फ फिल्म ही नहीं बने, बल्कि लेखन और थिएटर भी हो सकता है। साउथ ने फिल्मों और फिल्मी दुनिया को नया रास्ता दिखाया है, आज के दौर में हिंदी सिनेमा को उससे सीख लेनी चाहिए, अच्छे मुद्दों को लेकर फिल्म बननी चाहिए। थिएटर के साथ नए आयामों से जिंदगी को जारी रखने वाले नायक उनकी पसंद हैं। नामचीन लोगों को नायक समझना, उनकी तारीफ करके कुछ करना क्लैपट्रैप है। मेरे लिए अनजान लोग नायक हैं, जो अपनी जिंदगी में दूसरों की उन्नति के लिए कुछ खास करते हैं, ऐसे लोगों की कहानी सामने ला रहे हैं जिनकी कहानी चर्चित लोग नहीं सुना सकते।