सन 1942 में जब गांधी जी ने “क्विट इंडिया मूवमेंट” शुरू किया तो आन्दोलनकारियों ने निर्णय लिया कि अब जेल में नहीं रहना है। जेल से भागने की प्लानिंग की गई और 9 नवम्बर 1942, दिवाली की रात, जेपी सहित 6 अन्य क्रान्तिकारी जेल की दीवार फांदकर भाग गए। प्लानिंग इतनी तगड़ी थी कि उनके भागने के 9 घंटे बाद तक जेल प्रशासन को इसकी भनक नहीं मिली। इस ऐतिहासिक घटना के सूत्रधार कोई और नहीं बिहार के मिथिलांचल के धरती के सपूत क्रान्तिकारी शहीद सूरज नारायण सिंह हीं थे। जेपी को सूरज बाबू ने अपने कंधे पर बिठाकर दीवार चढ़ी थी ,दूसरी तरफ कुदते वक्त जेपी का पाँव कट गया था। भागने में दिक्कत हो रही थी और तब जेपी को कंधों पर बैठाकर 45 घंटों तक जंगलों में खाक छानते रहनेवाले सहित सूरज नारायण सिंह की स्मृति पर आज वक़्त के साथ धूल की परत से जम गई है जो दुखद भी है और अपमानजनक भी . . .
मधुबनी जिले के नरपतिनगर गांव में संभ्रांत परिवार में जन्मे सूरज नारायण सिंह बचपन से ही क्रान्तिकारी विचार व स्वभाव के थे। 14 वर्ष की आयु में ही असहयोग आन्दोलन से जुड़कर उन्होंने अपने अपने अन्दर की चिनगारी को दिखा दिया था। वो सबकुछ छोड़कर क्रान्तिकारी गतिविधियों में लिप्त हो गए थे इसी क्रम में वो जयप्रकाश स्वयं से जुड़े थे।सन 1943 मे अंग्रेजी हुकूमत ने नेपाल से जेपी, लोहिया रामानन्द एवं अन्य साथियों को गिरफ्तार कर लिया था। सूरज नारायण सिंह को जब इसकी जानकारी मिली तो एक बार पुन: उन्होंने इन सभी को छुड़ाने की योजना बनाई। 50 के करीब सशस्त्र क्रान्तिकारियों के साथ उन्होंने थाने पर हमला कर दिया और सभी गिरफ्तारियों को छुड़ा लिया।
आज़ादी के बाद भी सूरज बाबू कभी शांत नहीं रहे। उन्होंने अपना अधिकतम समय किसान और मजदूर के आन्दोलन को समर्पित कर दिया। ” हिंद मजदूर सभा” के अध्यक्ष के रुप में गरीब – गुरबा ,मज़दूरों की लड़ाई को ये अनवरत लड़ते रहे।
इसी क्रम में सन 1973 में मज़दूरों के उचित मांगों को लेकर रांची में सूरज बाबू के नेतृत्व में हड़ताल किया जा रहा था। आन्दोलन को दबाने के लिए मौजूदा कांग्रेसी सरकार ने साजिश रची। मजदूरों ने सूरज बाबू के नेतृत्व में आमरण अनशन शुरू कर दिया था। सरकार दबाव में आ गई थी ,और तब कुछ स्तरीय साजिश के तहत पुलिस- गुंडा गठजोड़ ने अनशनकारियों पर हमला कर दिया। हमले में सूरज बाबू गम्भीर रूप से जख्मी हो गए। इन्हें अस्पताल ले जाया गया जहां 21 अप्रैल को गहरी चोटों ने इनकी जान ले ली . . .!
21 अप्रैल है, अर्थात शहीद सूरज बाबू की पुण्यतिथि. . .! देश में एक तरफ आज़ादी का अमृत महोत्सव मनाया जा रहा है तो दूसरी ओर इतिहास के गर्भ में छुपे महापुरूषों को भी , जिनके जन्मतिथि और जाती के बारे में इतिहासकारों को भी नहीं पता को भी अपने जाति में समेटने की घृणित राजनीति की जा रही है. . . ! एक तरफ फेसबुकिया आन्दोलनकारियों द्वारा महापुरूषों को लेकर बड़े बड़े ज्ञान बांटे जा रहे हैं , तो दूसरी ओर फेसबुक पर ही जाति और धर्म के नाम पर अनावश्यक डिबेट करके समाज सामाजिक एकता और सद्भाव की धज्जियां उड़ाई जा रही है. . . !
मुझे याद है जब कई वर्ष पूर्व वीरचंद पटेल पथ में स्थित शहीद सूरज नारायण सिंह सेवा संस्थान के कार्यालय को तत्कालीन सरकार ने खाली कराने के लिए क्या कुछ किया था ! कार्यालय का सामान सड़क पर फेंक दिये गये थे। सूरज बाबू के परिजन सड़क पर धरना पर बैठे थे। संघर्ष के साथियों को शायद याद होगा , जब हम सबने अपनी छोटी जमात के साथ निर्णायक लड़ाई लड़ी थी। परिणाम भी मिले थे ! वीरचंद पटेल पथ के उसी मकान में कार्यालय भी खुला और उसी परिसर मे सूरज बाबू की प्रतिमा भी लगीं।पर क्या इतना काफी है. . .? आज उनकी प्रतिमा पर पड़े धूल को तो जैसे तैसे साफ किया जा रहा , मगर इतिहास के पन्नों पर जम रहे धूल को कौन साफ करेगा जिसमें उनकी स्मृति लुप्त होती जा रही !यह जिम्मेवारी सरकार की है . . ? समाज की है . . . ? या फिर उनके जात की है . . . ?जवाब सिर्फ हमें नहीं पूरे समाज को खोजना होगा !!