पार्टी से बे टिकट होने के बाद भी जीत का परचम लहराने वाले विधान पार्षद सच्चिदानंद राय सियासत की संभावनाओं को टटोलने में लगे है। जो लोग सारण में उनकी जीत को जातिगत सियासत का हिस्सा मान रहे हैं उन्हें भी पता है कि पूरा खेल मैनेजमेंट का है। हालांकि सच्चिदानंद राय पढ़े-लिखे कमिटमेंट वाले राजनेता माने जाते हैं सारण के एक वर्ग विशेष में उनके मजबूत फॉलोअर्स भी हैं। सारण के सियासत में इंजीनियर साहब ने वैसे तो दुश्मन किसी को नहीं बनाया है। सारण की जीत ने सच्चिदानंद राय को संजीवनी जरूर दिया हैं।
अब वह महाराजगंज से सांसद बनने की तैयारी में हैं।पर यह राह आसान नहीं भाजपा किसी भी कीमत पर वर्तमान सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल की जगह किसी दूसरे को महाराजगंज से टिकट देने की संभावनाओं पर विराम लगा रखा है।प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कोर टीम के सदस्य हैं जनार्दन सिंह सिग्रीवाल चर्चा है अगर सब कुछ ठीक रहा तो जल्दी मोदी मंत्रिमंडल में एंट्री भी हो सकती है। महाराजगंज सीट पर वर्तमान सांसद जनार्दन सिंह सिग्रीवाल के बाद अगर किसी भूमिहार चेहरे को आगे करना होगा तो वह नाम है महाचंद्र प्रसाद सिंह का। राजद की तरफ से पूर्व सांसद प्रभुनाथ सिंह के पूर्व विधायक पुत्र रणधीर सिंह का टिकट कंफर्म है। राजद को पता है की प्रभुनाथ सिंह का प्रभाव आज भी ज्यों का त्यों बरकरार है मोदी लहर के कारण वोट कुछ कम जरूर हुई है पर वोटरों को बांधने की क्षमता किसी दूसरे के पास नहीं सच्चिदानंद राय भाजपा से टिकट कटने के बाद तथा ताल ठोक कर निर्दलीय चुनाव जीतने के बाद जदयू और राजद में संभावनाएं तलाश रहे है.
हालांकि उनकी पुनः भाजपा में वापसी कराने की भी तैयारी गुपचुप तरीके से चल रही है। विश्वस्त सूत्र बता रहे हैं कि सच्चिदानंद राय जदयू और राजद के सामने एक ही शर्त रखी है अगर जदयू में जाते हैं तो भी और राजद में जाते हैं तो भी उन्हें महाराजगंज से सांसद का टिकट चाहिए। भाजपा यह सीट किसी भी कीमत पर जदयू को वापस करने को तैयार नहीं है एक सीट अगर अदला-बदली होती है तो बगल के गोपालगंज सिवान छपरा और वैशाली तक में सिंबल बदलना होगा जो फिलहाल संभव नहीं दिखता। राजद के भूमिहार मतदाताओं के प्रति उमड़े प्रेम को देखते हुए कई बड़े नेता सच्चिदानंद राय को राजद में लाना चाहते हैं पर वह बिना शर्त राजद में भी आने को तैयार नहीं है और उनकी एक ही शर्त है कि वह महाराजगंज से चुनाव लड़ेंगे। राजद से जुड़े सूत्र बताते हैं कि यह किसी भी हाल में संभव नहीं है प्रभुनाथ सिंह ने बुरे वक्त में लालू प्रसाद यादव का साथ दिया और हर परिस्थितियों में पार्टी को मजबूती प्रदान की है ऐसे में राजद अपने क्षेत्रीय कद्दावर नेता को खोना नहीं चाहता।
विधान परिषद का चुनाव निर्दलीय जीतने के बाद सच्चिदानंद राय का कद सारण ही नहीं बिहार की राजनीति में भी बढ़ा है। सच्चिदानंद राय ने भी अपने सभी विकल्पों को खोल कर रखा है। अब तो यह आने वाला वक्त ही बताएगा कि वे विधान परिषद चुनाव में भाजपा से कटे अपने टिकट का बदला महाराजगंज लोकसभा में ले पाएंगे। राजनीति में बड़ा दखल रखने वाले जानकार बताते हैं कि बोचहा उपचुनाव के बहाने राजद का दही चुरा वाला फार्मूला कितना हिट होता है यह भी इस बात पर निर्भर करेगा अगर राजद बोचहा जीतती है तो जाहिर सी बात है कि राजद में भूमिहारों की पूछ और ज्यादा बढ़ेगी और कई कद्दावर नेता राजद में भी एंट्री करेंगे ऐसे में अन्य दल भी उसकी भरपाई करने के लिए दूसरे स्वर्ण जातियों के बड़े नेताओं को बड़े ओहदे पर लेकर आएंगे जिससे बिहार की राजनीति में बड़ा उलट-पुलट होने की भी संभावना है।