फूल और बेलपत्र से बनाई गई मां महागौरी
फूल और बेलपत्र से बनाई मां महागौरी भगवती मां दुर्गा की भक्ति कर शक्ति पाने के महाव्रत शारदीय नवरात्र….
के आठवें दिन श्रद्धालुओं ने महागौरी की पूजा अर्चना किया।
महागौरी की पूजा को लेकर तमाम दुर्गा मंदिरों में भक्तों की भीड़ उमड़ पड़ी है।
इन सबके बीच मंझौल अनुमंडल के विक्रमपुर गांव में कई दशक से चली आ रही |
परंपरा की तरह फूल और बेलपत्र से भगवती के अष्टम स्वरूप की प्रतिमा बनाई गई है।
यहां सैकड़ों वर्ष से वर्षों से शारदीय नवरात्र में प्रत्येक दिन माता भगवती के अलग-अलग स्वरूपों की प्रतिमा फूल और बेलपत्र से बनाकर पूजा-अर्चना की जाती है|
तथा ग्रामीण के अलावा दूर-दूर से भी भक्तों की भारी भीड़ उमड़ती है।
विशेष पूजा पद्धति के लिए चर्चित क्षेत्र के विक्रमपुर गांव माता के भक्ति रस में सराबोर हो गया है।
यहां रोजाना मां की आकृति बनाने के लिए फूल-बेलपत्र इकट्ठा करने के लिए गांव वालों की उत्साह देखते ही बनती है।]
मां की आकृति के साथ वैदिक रीति से होने वाली पूजा देखने के लिए श्रद्धालु यहां दूर-दूर से पहुंचते हैं और देर रात घर लौटते हैं।
पूजा करने उमड़ी भीड़
ग्रामीणों ने बताया कि माता जयमंगला की असीम अनुकंपा के कारण गांव में सुख-शांति और समृद्धि है।
और कहा जाता है कि करीब सवा सौ वर्ष पूर्व जयमंगलागढ़ में बलि प्रदान करने को ले पहसारा और विक्रमपुर गांव के जलेबारों में ठन गई थी। दोनों एक-दूसरे के जानी दुश्मन बन गए थे।
इसी दौरान नवरात्र के समय विक्रमपुर गांव के स्व. सरयुग सिंह के स्वप्न में मां जयमंगला आई
और उन्होंने कहा कि नवरात्र के पहले पूजा से लेकर नवमी पूजा के बलि प्रदान करने तक मैं विक्रमपुर गांव में रहूंगी, इसके बाद गढ़ को लौट जाऊंगी।
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देवी ने कहा था अपने हाथों से फूल, बेलपत्र तोड़ कर आकृति बनाकर पूजा करने एवं धूप और गुग्गुल से पूजा करो।
उसी समय से यहां पर विशेष पद्धति से पूजा प्रारंभ हुई और आज भी उनके वंशज पूजा करते आ रहे हैं।
कलश स्थापन के दिन स्व. सिंह के वंशज मिलकर मंदिर में कलश की स्थापना करते हैं।
रोजाना अपने हाथों से तोड़े गए फूल-बेलपत्र की आकृति बनाकर पूजा करते हैं।
विशेष तरीके से चुने गए फूल और बेलपत्र से सब मिलकर दो घंटे में स्वरूप तैयार करते हैं
और यह स्वरूप अगले दिन हटाकर भगवती का नया स्वरूप बनाया जाता है।
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