“जेठ बइसाखवा के तलफी भुभुरिया , ए ननदिया मोरी रे, चलत में पउआं पिराय….. महेन्दर_मिसिर की मूल रचना है|
विद्यापति ने अपनी मेधा से मैथिली को
पूर्वी के जनक महेंद्र मिसिर Latest bihar News : जिस तरह से विद्यापति ने अपनी मेधा से मैथिली को , रवीन्द्रनाथ टैगोर ने बांग्ला को एक नया सांगीतिक आयाम दिया , उसी तरह महेंदर मिसिर ने भोजपुरी संगीत को एक नया आयाम दिया ।
महेंदर मिसिर सामाजिक क्षेत्र में कर्मयोद्धा थे तो साहित्यिक क्षेत्र में संस्कृति योद्धा ।
उनके सम्पूर्ण साहित्य के विशद मूल्यांकन की जरूरत है।आज एक ऐसे साहित्यकार, कलाकार की कहानी जिसका जीवन किसी बेहतरीन कहानी की तरह है।
एक अद्वितीय कहानी
एक अद्वितीय कहानी के सारे तत्व मौजूद। कहानी जो समय के साथ भोजपुरी मानस में किवंदती बनती चली गयी। एक ऐसे गायक जो ना सिर्फ़ लोक गायकी में महारत रखते थे बल्कि शास्त्रीय संगीत में भी उतने ही सिद्धहस्त थे।
प्रसिद्धि का ये आलम कि जब गिरमिटिया मजदूरों को पूर्वांचल और आसपास के इलाकों से सूरीनाम, फिज़ी, त्रिनिदाद, मॉरिसस, ब्रिटश गुयाना, नीदरलैंड लेकर जाया गया
तो वो अपनी मिट्टी के साथ इस कलाकार का गीत भी लेकर गए।
एक ऐसा गीतकार जो स्त्री मन की गहराइयों में बड़ी संजीदगी से उतर पाया
और जिसके लिए कलकत्ता की तवायफों ने अपने गहने तक उतार दिए।
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पूर्वी के जनक महेंद्र मिसिर Latest bihar News : जिसने दोस्ती के लिए अपहरण तक किया और जो अंग्रेज़ी हुकूमत की आँख का कांटा बन गया।16 मार्च 1888 को छपरा जिला के मिश्रौलिया गाँव में जन्मे थे महेंदर मिसिर।
संगीत विरासत में मिला था और साथ में गरीबी भी।
घुड़सवारी और पहलवानी का ऐसा शौक़ कि अगर वो गीतकार, संगीतकार और गायक ना होते तो पहलवान होते। रूपरेखा देवी से ब्याह हुआ। लेकिन गृहस्थी में मन नहीं लगा।
गृहस्थी छोड़कर गवई में उतर गए।
भजन-कीर्तन
भजन, कीर्तन, पूर्वी, निर्गुण, ठुमरी, ग़ज़ल, दादरा, खेमटा, कजरी सब एक साथ।
पूरबी का तो उन्हें जनक भी कहा जाता है। और देश दुनिया में वो पूरबी हृदय सम्राट के नाम से जाने जाते है।
लेकिन कई लोगों का मानना है कि-
पूरबी पहले से थी मगर पूरबी को पूरबी बनाने और उसे जन जन के बीच फैलाने का श्रेय महेंदर मिसिर को जाता है।
आज पूरबी और महेंदर मिसिर एक दूसरे के पर्यायवाची हो चुके हैं।महेंदर मिसिर भोजपुरी के शेक्सपियर कहे जाने वाले भिखारी ठाकुर के गुरु भी थे।
ये अलग बात है कि भिखारी ठाकुर ने खुले में इसबात का कभी ज़िक्र नहीं किया मगर लोक में यह बात मालूम थी।
भिखारी की कई रचनाओं का सूत्र महेंदर मिसिर की रचनाओं से निकलता है। भिखारी ठाकुर का मशहूर नाटक ‘बिदेसिया’ का मूल भी महेंदर मिसिर का गीत ‘टुटही पलानी’ को माना जाता है।
कहा जाता है कि महेंदर ने ही भिखारी ठाकुर को झाल बजाना सिखाया था।
महेंदर मिसिर सिर्फ भिखारी के ही गुरु नहीं थे।
कलकत्ता, बनारस, मुज़्ज़फरपुर की कई तवायफें उनको अपना गुरु मानती थीं और उनके गीत गाया करती थीं।
महेंदर यारों के यार थे। अपने दोस्त जमींदार हलीवन्त सहाय के लिए मुज़्ज़फरपुर की मशहूर तवायफ ढेला बाई को उठा लाये।
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लेकिन इसतरह पश्चाताप की आग में जलते रहे कि फिर ज़िन्दगी भर हर दुख सुख में ढेला बाई का साथ निभाया।
महेंदर मिसिर का समय गांधी जी के उत्थान और स्वतंत्रता आंदोलन का समय था।
महेंदर भी इससे अछूते नहीं रहे बल्कि बढ़चढ़कर आंदोलनकारियों की मदद की।
उनका घर आंदोलनकारियों का गुप्त अड्डा था जहाँ गीत संगीत की महफिलें भी सजा करती थीं।
ब्रिटिश हुकूमत की रीढ़
उन्होंने ब्रिटिश हुकूमत की रीढ़ तोड़ने का अलग ही तरीका निकाला।
कलकत्ता में एक अंग्रेज से मिले नकली नोट छापने की मशीन
से नकली नोट छापकर आर्थिक रूप से अंग्रेजों को नुकसान पहुंचाने लगे।
अंग्रेज़ो ने जटाधारी प्रसाद और सुरेंद्र लाल घोष के नेतृत्व में उनके पीछे जासूस लगा दिए।
सुरेंद्र लाल घोष उनके यहाँ तीन साल तक गोपिचन के नाम से
नौकर बनकर जानकारियां इकट्ठी करता रहा और एक दिन अंग्रेजों को ख़बर करके गिरफ्तार करवा दिया।
महेंदर मिसिर ने उसके विश्वासघात पर गया-
पाकल पाकल पानवा खिअवले गोपीचनवा पिरितिया लगा के ना,
हंसी हंसी पानवा खिअवले गोपीचानवा पिरितिया लगा के ना…
मोहे भेजले जेहलखानवा रे पिरितिया लगा के ना…
और यह गीत लोगों के बीच ऐसा मशहूर हुआ कि गोपिचन नाम विश्वासघात का प्रतीक बन गया।
पटना उच्चन्यालय में उनके लिए
मुकदमा लड़ा विप्लवी हेमचंद्र और महान स्वतन्त्रता सेनानी चितरंजन दास ने।
यही वो वाकया है जब कलकत्ता की कई तवायफों ढेला
बाई, विद्याधरी बाई, केशर बाई आदि ने अपने गहने उतारकर अधिकारियों को दे दिया कि महेंदर मिसिर को छोड़ दिया जाय।
तीन महीने केस चलने के बाद
लेकिन तीन महीने केस चलने के बाद उनको 10 साल की सजा हो गयी।
महेंदर मिसिर ने अपना अपराध कबूल कर लिया था।
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भक्ति, श्रृंगार और आमजन का गीत गाने वाले इस महान कलाकार के गीतों में प्रेम और वियोग भी उतना ही गहरा है।
और जानकारी के लिए Bihar politics ki news के लिए ढेला बाई से उनके प्रेम को किसी परिभाषा में नहीं बंधा जा सकता।
उनका यह प्रेम उनके गीतों के विरह और वियोग में सिर्फ महसूस किया जा सकता है।
26 अक्टूबर 1946 को महेंदर मिसिर की मृत्यु जिस जगह हुई वह ढेला बाई के कोठे के पास बना शिव मंदिर था।
महेंदर मिसिर पर या उनसे प्रभावित कई किताबें लिखी गईं-
रामनाथ पाण्डे का उपन्यास ‘महेंदर मिसिर’ पांडे कपिल का उपन्यास ‘फुलसूंघी’, जगन्नाथ पांडे का पूरबी ‘पुरोधा’ आदि।
भोजपुरी का पहला महाकव्य ‘अपूर्व रामायण’ लिखने वाले
इस साहित्यकार ने महेंद्र बिनोद, महेंद्र मंजरी, महेंद्र रत्नावली, महेन्द्र प्रभाकर, भीष्म प्रतिज्ञा जैसी कई बेमिशाल रचनाएं रचीं।
लेकिन सहित्यविद और आलोचक इन्हें साहित्यकार मनाने से कतराते रहे।
मगर नज़ीर अकबराबादी की तरह वो भोजपुरी मानस में इस कदर पैठ चुके हैं कि
आने वाली ना जाने कितनी ही सदियों तक लोगों के दिलों पर राज करते रहेंगे
और लोग उन्हें प्रेम से हृदय सम्राट कहकर बुलाते रहेंगे, Best hindi newspaper 0f bihar ,Latest bihar news today से जुड़े रहने के लिए
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